कोंपलें फिर फूट आईं

अंतिम रुप में मैं तुमसे यही कहना चाहता हूं कि अगर तुम्हारे जीवन में जरा सी भी बुद्धि है, तो इस चुनौती को स्वीकार कर लेना कि बिना अपने को जाने अरथी को उठने नहीं दोगे। हां, अपने को जान कर कल की उठने वाली अरथी आज उठ जाए तो भी कोई हर्ज नहीं। क्योंकि जिसने अपने को जान लिया, उसकी फिर कोई मृत्यु नहीं है। अमृत का अनुभव एकमात्र विकास है।